Shayari | शायरी में पेश है ‘अमीर क़ज़लबाश’ की ग़ज़ल मेरे जुनूं का नतीजा ज़रूर निकलेगा, इसी स्याह समंदर से नूर निकलेगा। ये गज़ल एक प्रेरणादायक रचना है, साथ ही ये नाइंसाफी के हालात पर एक तनकीद (आलोचना) भी करती है। ये ग़ज़ल आपको ज़िंदगी का फलसफा देती है और सबक भी देती है।
मेरे जुनून का नतीजा जरूर निकलेगा,
इसी स्याह (काला) समंदर से नूर निकलेगा,
गिरा दिया है तो, साहिल (किनारा) पर इंतिजार न कर,
अगर वह डूब गया है, तो दूर निकलेगा,
उसी का शहर, वही मुद्दयी (दावेदार) वही मुंसिफ (जज),
हमें यक़ीन था हमारा कुसूर निकलेगा,
यकीन न आए तो एक बात पूछ कर देखो,
जो हंस रहा है वो ज़ख्मों से चूर निकलेगा,
उस आस्तीन से अश्कों (आंसू) को पोछने वाले,
उस आस्तीन से खंजर जरूर निकलेगा।
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