New Parliament Controversy| नए संसद भवन के उद्घाटन का विवाद सुप्रीम कोर्ट की दहलीज़ तक पहुंच गया है। नई संसद का उद्घाटन पीएम मोदी करेंगे या राष्ट्रपति अब इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट करेगा। इसे लेकर शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि लोकसभा सचिवालय, भारत संघ, गृह मंत्रालय, कानून और न्याय मंत्रालय ने संविधान का उल्लंघन किया है और संविधान का सम्मान नहीं किया जा रहा है।
वरिष्ठ वकील सीआर जया सुकिन की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि नए संसद भवन के उद्घाटन के बारे में 18 मई को लोकसभा सचिवालय का बयान और लोकसभा के महासचिव द्वारा जारी किया गया निमंत्रण पत्र नेचुरल जस्टिस के मूल सिद्धांतों का पालन नहीं करता है और संविधान के अनुच्छेद 21, 79, 87 का उल्लंघन करता है।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि संसद भारत की सर्वोच्च विधायी संस्था है। संसद में राष्ट्रपति और राज्यसभा और लोकसभा शामिल हैं। राष्ट्रपति को सदन बुलाने और सत्रावसान करने की शक्ति होती है। प्रधानमंत्री की नियुक्ति भी राष्ट्रपति करता है और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर करता है।
याचिका में लिखा है कि राष्ट्रपति को राज्यपाल, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों के न्यायाधीशों, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक, UPSC अध्यक्ष और प्रबंधक, CEC, वित्तीय आयुक्त और अन्य संवैधानिक पदों के प्रमुखों को नियुक्त करने के लिए अधिकृत किया गया है। ऐसे में नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति के द्वारा ही होना चाहिए।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि दोनों सदनों का मुख्य काम कानून बनाना है। हर विधेयक को दोनों सदन पारित करते हैं और कानून बनने से पहले राष्ट्रपति इस पर मुहर लगाते हैं। संविधान का अनुच्छेद 87 ऐसे दो उदाहरण प्रदान करता है जब राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों को संबोधित करते हैं। राष्ट्रपति हर आम चुनाव के बाद पहले सत्र की शुरुआत में राज्यसभा और लोकसभा को संबोधित करते हैं। इसके साथ ही वो हर साल पहले सत्र की शुरुआत में दोनों सदनों को संबोधित करते हैं।