खेल प्रदर्शन से धरना प्रदर्शन तक…

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सोनिया नवल । एक विरोध (खेल) स्थल के रूप में जंतर मंतर की कहानी 1993 में शुरू हुई थी। जिसके लिए कोई अध्यादेश लागू नहीं हुआ था, कोई आधिकारिक घोषणा नहीं थी, फिर भी ये सड़क नई दिल्ली में एकमात्र ऐसा स्थान बन गयी जहाँ धारा 144 जो पांच से अधिक लोगों की सभा को प्रतिबंधित करता है-लागू नहीं की गयी थी। उस वर्ष, राजधानी को जंतर मंतर के रूप में एक नया विरोध वर्ग प्राप्त हुआ। पिछले कई वर्षों से जंतर मंतर विभिन्न प्रकार के विरोध प्रदर्शनों से जुड़ा हुआ है। और एक बार फिर विरोध प्रदर्शन करते हुए पहलवानों, जिनका नेतृत्व साक्षी मलिक, विनेश फोगाट और बजरंग पुनिआ कर रहे हैं, ने भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के प्रमुख और भाजपा संसद बृजभूषण शरण सिंह को यौन शोषण मामले में दंडित करने की मांग करते हुए इसे अपने संचालन का आधार बनाया है। पहलवानों का आंदोलन जंतर मंतर पर अपनी आवाज़ बुलंद करता नज़र आ रहा है। बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ भारत के शीर्ष पहलवानों का विरोध प्रदर्शन बुधवार को 18वें दिन में प्रवेश कर गया।

एक ज़माना था जब कुश्ती को व्यायाम और मनोरंजन के लिए खेला जाता था, शारीरिक और मानसिक रूप से चुस्त- तंदरुस्त रहने के लिए कुश्ती के खेल हुआ करते थे। ज़माना बदला और मनोरंजन, प्रतिस्पर्धा में बदल गया। शुरुआत में कुश्ती का खेल केवल पुरुषों द्वारा ही खेला जाता था लेकिन बदलते दौर के साथ महिलाओं के लिए भी दरवाज़े खुलते गए और आज ये खेल ओलंपिक्स और अन्य प्रतिस्पर्धाओं में बढ़ चढ़ कर खेला जाता है जहाँ केवल पुरुष खिलाड़ी ही नहीं बल्कि महिला खिलाड़ी भी मैडल जीतकर लाती हैं। जितना पुराना कुश्ती का इतिहास है, उतना ही समकालीन भारत में इसका दबदबा है। फोगाट बहनों से लेकर साक्षी मलिक, योगेश्वर दत्त, बजरंग पुनिआ जैसे बड़े नाम इसमें शामिल हैं जिन्होंने समय समय पर पदक जीतकर देश का नाम रौशन किया है। सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है, सीना चौड़ा और ज़ुबान से एक ही बात निकलती है ‘म्हारी छोरियां के छोरों से कम है’।

फिर आज ऐसा क्या हुआ कि यही बड़े नाम प्रतियोगिता कि जगह सड़कों पर लड़ते नज़र आ रहे हैं। चीख़ रहे हैं, चिल्ला रहे हैं लेकिन किसी के कान पर कोई जूँ भी नहीं रेंग रही।

दरअसल ये कुश्ती की नहीं बल्कि हक़ की लड़ाई है। ये लड़ाई है उस अन्याय के ख़िलाफ़ जो इन महिला खिलाड़ियों ने सहे हैं। देश एक तरफ तरक्की कि राह पर है और दूसरी तरफ महिलाओं के साथ होने वाले शोषण थमने का नाम नहीं ले रहे। खिलाड़ियों का ऐसा भविष्य तो नहीं सोचा था, आख़िर क्या होता जा रहा है हमारी मानसिकता को, क्यों इस देश में लोगों को न्याय के लिए वनवास काटने जैसे आंदोलन करने पड़ते हैं, क्यों अन्याय को ख़त्म नहीं किया जाता। ज़रा सोचिये यौन उत्पीड़न कि शिकार ये महिलाएं जब मैट पर अपने पैर जमाती है तो वे किस तरह कि समस्याओं का सामना करके वहां तक पहुंचती हैं। जो व्यक्ति उन्हें परेशान करता है, छेड़खानी करता हैं उसकी ग़लत निग़ाह के साये में रहकर भी वो मैडल लाती हैं। आप ख़ुद को उस स्तिथि में रखेंगे शायद तभी समझ पाएंगे कि कितना ज़ुल्म होता है इन लड़कियों के साथ। लेकिन आवाज़ तो उठानी ही होगी आख़िर कब तक सहेगा कोई।

तीन महीने पहले जनवरी में इस आंदोलन की शुरुआत हुई जब कुछ महिला पहलवानों ने भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए। बताया गया कि महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और दुर्व्यवहार किया जाता हैं। जब ये सभी बातें उजागर हुई तो खिलाड़ियों ने एकजुट होकर इस मुद्दे पर तुरंत प्रभाव से कार्रवाई करने की मांग की, उस समय पहलवान खिलाड़ियों को आश्वासन दिया गया कि उनकी समस्याओं का जल्द ही समाधान किया जाएगा। खेल मंत्रालय की और से समिति का गठन किया गया, लिहाज़ा ये कार्रवाई होती देख पहलवान खिलाड़ी भी आश्वस्त दिखाई दिए। अब सिलसिला शुरू होता है इंतज़ार का, एक दिन बीता, एक हफ्ता बीता और जल्द ही एक महीना भी बीत गया, पर बात आगे नहीं बढ़ी, खिलाड़ियों की और से समिति के सदस्यों को फ़ोन किये गए लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। सब्र का बाँध टूटने की कगार पर आ पहुँचा और आख़िरकार समिति की और से कोई जवाब न मिलने पर इस आंदोलन ने एक बार फिर रफ़्तार पकड़ी। विडम्बना देखिये समिति की अध्यक्ष भी एक महिला ही थीं, मैरी कॉम।

23 अप्रैल को पहलवान खिलाड़ी एक बार फिर धरने पर बैठे और आज ये प्रदर्शन अपने 18वें दिन में पहुंच गया है। हालाँकि बहुत ज़ोर डालने पर बृजभूषण शरण सिंह पर एफआईआर तो दर्ज कर ली गयी है लेकिन अभी भी बहुत से कदम उठाने बाक़ी है जिनको मनवाने के लिए ये आंदोलन अभी भी जारी है। मांगों में बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न और शोषण का आरोप लगाते हुए पद से इस्तीफ़ा और गिरफ़्तारी शामिल है, साथ ही उन पर और उनके परिवार के सदस्यों पर डब्ल्यूएफआई में किसी भी तरह की भागीदारी पर प्रतिबंध लगाया गया है।

हज़ारों लोग धरने का समर्थन करने रोज़ जंतर मंतर पहुंच रहे हैं, हालाँकि दिल्ली पुलिस ने उन्हें रोकने के सारे इंतेज़ाम पहले ही कर लिए थे लेकिन कहते हैं सच्चाई अपना रास्ता बना ही लेती है। पहलवानों की तरफ़ से ये पहले ही साफ़ कर दिया गया है कि जब तक इस मामले की पूरी तरह से जांच नहीं हो जाती और बृजभूषण को गिरफ्तार नहीं कर लिया जाता वे धरने पर बैठे रहेंगे। जिस तरह स्टेडियम में लोग इन खिलाड़ियों का हौंसला बढ़ाते हैं वैसे ही ये देश आज आंदोलन का हिस्सा बनकर पहलवानों की हौंसला अफ़ज़ाई कर रहा है।

इस आंदोलन का अंजाम क्या होगा ये अभी बताना थोड़ा मुश्किल है लेकिन सोचने वाली बात है, एक खिलाड़ी जो दिन रात मेहनत करता है अपने देश के लिए, परिवार के लिए, दोस्तों के लिए, कितनी कुर्बानियां देता है उस दिन के लिए जब उसके गले में मैडल हो और उसका देश ख़ुशी में झूम रहा हो, उनके साथ ऐसा अन्याय होना नैतिकता और मानवीयता के ख़िलाफ़ है।


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