Kaifi Azmi | मैं ढूंढता हूं जिसे वो जहां नहीं मिलता- क़ैफ़ी आज़मी

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Kaifi Azmi | Main Dhundhta Hoon Jise Wo Jahan Nahi Milta

मैं ढूंढता हूं जिसे वो जहान नहीं मिलता,

नई जमीं नया आसमां नहीं मिलता,

नई जमीं नया आसमां मिल भी जाए,

नए बशर का कहीं कुछ निशान नहीं मिलता,

वो तेग मिल गई जिससे हुआ है कत्ल मेरा,

किसी के हाथ का..उस पर निशान नहीं मिलता,

वो मेरा गांव है…वो मेरे गाँव के चूल्हे,

के जिनमें शोले तो शोले धुआं नहीं मिलता,

जो एक ख़ुदा नहीं मिलता..तो इतना मातम क्यों,

यहां तो कोई मेरा हमजबां नहीं मिलता,

खड़ा हूं कब से मैं, चेहरों के एक जंगल में,

तुम्हारे चेहरे सा कुछ भी यहां नहीं मिलता.

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