Sengol | सेंगोल की कहानी में कितनी सच्चाई है? सरकार के तर्क बहुत कमज़ोर हैं!

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Sengol| नए संसद भवन के उद्घाटन से पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नई इमारत में सेंगोल (राजदंड) को स्थापित करने की बात कहकर सभी को चौका दिया। पत्रकार, लेखक, बुद्धिजीवी औऱ इतिहासकार सेंगोल को लेकर चकरा गए कि ऐसा कैसे हो सकता है कि भारत की आज़ादी के वक्त ऐसा कोई राजदंड लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत के पहले प्रधानमंत्री को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर दिया और ये बात इतिहास में खो गई।

इसकी न तो कोई तस्वीर सामने आई और न की किसी इतिहासकार ने अपनी पुस्तक में ऐसी घटना को ज्यादा अहमियत दी। इसकी सच्चाई को सामने लाते हुए द हिंदू अखबार में एक लेख छपा है जिसे ‘पॉन वसंत बीए’ ने लिखा है जो सेंगोल (राजदंड) से जुड़े भ्रामक तथ्यों को उजागर करता है।

मोदी सरकार का दावा है कि भारत के आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने नेहरू से कथित तौर पर पूछा कि क्या सत्ता के हस्तांतरण को दर्शाने की कोई प्रक्रिया है? इस पर नेहरू ने भारत के अंतिम गवर्नर-जनरल सी. राजगोपालाचारी से सलाह मशविरा किया। उन्होंने थिरुवदुथुराई अधीनम से राजदंड तैयार करवाया जिसे शक्ति और न्यायपूर्ण शासन के पवित्र प्रतीक के रूप में देखा जाता है। सरकार का दावा है कि राजदंड को भेंट करने वाले प्रतिनिधिमंडल को एक विशेष विमान से दिल्ली बुलाया गया।

इस बात के पूरे प्रमाण हैं कि अधीनम के प्रमुख श्री ला श्री अंबालावना पंडारसन्धि स्वामीगल के भेजे एक प्रतिनिधिमंडल ने मंत्रोचार के साथ नेहरू को राजदंड भेंट किया। हालाँकि सरकार के इस दावे पर सबूत बहुत कम है कि राजदंड भेंट करना सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक था।

उस वक्त के भारतीय अखबारों जिनमें द हिंदू समाचार पत्र भी शामिल है उनकी रिपोर्टों में संक्षेप में राजदंड भेट करने का जिक्र तो है लेकिन इसे सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक होने या राजागोपालाचारी की सलाह पर लिए जाने की बात नहीं है।

यहां ये जानना भी अहम है कि द हिंदू में छपी एक तस्वीर में दिल्ली जाने से पहले 11 अगस्त, 1947 को सेंट्रल रेलवे स्टेशन, चेन्नई में प्रतिनिधिमंडल को देखा जा सकता है। इससे साफ होता है कि कोई प्रतिनिधिमंडल विमान से नहीं आया था, वो ट्रेन से आए थे।

संगोल को लेकर जो अन्य कथित सबूत दिए जा रहे हैं उनमें टाइम मैगजीन में 25 अगस्त, 1947 को छपा एक लेख भी शामिल है। 14 अगस्त, 1947 को हुए घटनाक्रम का जिक्र करते हुए लेख में बताया गया है कि दक्षिण भारत के तंजौर से थिरुववदुथुराई अधिनम के प्रमुख श्री अम्बालावन देसीगर के दो दूत आए।

श्री अम्बालावन ने सोचा कि भारतीय सरकार के पहले भारतीय प्रधानमंत्री के तौर पर नेहरू को प्राचीन हिंदू राजाओं की तरह हिंदू संतों से शक्ति और अधिकार के प्रतीक के तौर पर राजदंड लेना चाहिए। यहां राजदंड को शक्ति के प्रतीक के तौर पर देखना श्री अम्बालावन के विचार बताए गए हैं लेकिन ऐसा नहीं कहा गया है कि नेहरू भी सेंगोल (राजदंड) को शक्ति के प्रतीक के तौर पर देखते थे और उनके भी ऐसे ही विचार थे।

किताब फ्रीडम एट मिडनाइट जिसे सबूत के तौर पर पेश किया जा रहा है उसमें भी ऐसा ही लिखा है। “जैसे हिंदू संत प्राचीन भारत के राजाओं को शक्ति का प्रतीक प्रदान करते थे वैसे ही संन्यासी यॉर्क रोड पर नेहरू को प्राचीन शक्ति (अधिकार) का प्रतीक देने आए थे।”

सेंगोल के अन्य साक्ष्यों में अंबेडकर की किताब ‘थॉट्स ऑन लिंग्विस्टिक स्टेट्स’, पेरी एंडरसन की पुस्तक द इंडियन आइडियोलॉजी और यास्मीन खान की ग्रेट पार्टीशन: द मेकिंग ऑफ इंडिया एंड पाकिस्तान के अंश शामिल किए गए हैं। ये सभी किताबें धार्मिक अनुष्ठानों जिनमें नेहरू ने भाग लिया के प्रति आलोचनात्मक थीं लेकिन सेंगोल का सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में कहीं कोई जिक्र नहीं है।

अहम बात ये है कि पेश किए गए किसी भी साक्ष्य में ये नहीं कहा गया है कि राजदंड को पहले प्रतीकात्मक रूप से माउंटबेटन को दिया गया और सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में उन्होंने इसे नेहरू को दिया।

इसे लेकर साल 2021 का सिर्फ एक लेख मिलता है जो तुगलक पत्रिका में छपा जिसके संपादक एस. गुरुमूर्ति हैं (एस गुरुमूर्ति RSS के स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक हैं)। उनके लेख में वो सब कुछ लिखा है जो सरकार ने श्री कांची कामकोटि पीतम के 68वें प्रमुख श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती के हवाले से कहा। चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती ने अपने विचार साल 1978 में अपने शिष्यों के साथ साझा किए गए थे।

सेंगोल को लेकर जो साक्षेय दिए गए उनमें सबसे विडंबनापूर्ण साक्ष्य प्रसिद्ध तमिल लेखक जयमोहन द्वारा लिखित “व्हाट्सएप हिस्ट्री” नामक एक ब्लॉग पोस्ट था। इस पोस्ट में जयमोहन ने ऐसी तमाम घटनाओं के इस पहलू का मज़ाक उड़ाया था क्योंकि ये सोशल मीडिया पर फैलाई गई जानकारी पर आधारित है।

उन्होंने लिखा कि स्वतंत्रता के दौरान देश भर से नेहरू को कई उपहार भेजे गए। सेंगोल या राजदंड भी उन्हीं में से एक हो सकता है। हालांकि उन्होंने कहा कि ये तमिलों के लिए गर्व की बात है कि शैव मठ से राजदंड भी नेहरू तक पहुंचा।

इस दस्तावेज़ में साल 2021-2022 में तमिलनाडु में हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग की तैयार की गई वार्षिक नीति नोट का भी उल्लेख किया गया। इसमें कहा गया कि सेंगोल यानी राजदंड सत्ता के हस्तांतरण को दर्शाता है।

25 मई को जब विभाग के अधिकारियों से इस बयान के स्रोत के बारे में जानकारी मांगी गई तो वो स्पष्ट नहीं कर सके। विभाग के साल 2022-23 और 2023-24 के पॉलिसी नोट से इस संदर्भ को हटा दिया गया।


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